रविदास जीवनी
संतो के संत ,संत शिरोमणि रविदास जी का जन्म सन 1388 ( कुछ विद्वान इनका जन्म 1398 में बताते है ) काशी ( वाराणसी ) में हुआ था। रविदास जी के पिता का नाम रग्घू तथा माता का नाम घुरबिनिया था। बताया जाता है कि रविदास जी चमार जाति के थे। इनके पिता चर्म का काम करते थे। संत रविदास भी वही कार्य करने लगे। उनके समय से काम करने और मधुर व्यवहार के कारण लोग रविदास जी से प्रसन्न रहते थे। वे अपना कार्य पूरी लगन और परिश्रम से करते थे। साधु -संतो की सहायता करने में उन्हें अत्यंत आनंद मिलता था।
स्वामी रामानन्द काशी के प्रतिष्ठित संत थे। रविदास जी उन्ही के शिष्य बन गए। रविदास जी अपना कार्य भी करते थे और कार्य करने के बाद वे अधिकतर समय स्वामी रामानंद के साथ बिताते थे।
"मन चंगा तो कठौती में गंगा "
रविदास जी का जन्म उस समय हुआ जिस समय समाज में अनेक बुराइयाँ फैली थीं ,जैसे अंधविश्वास ,धार्मिक आडंबर ,छुआछूतआदि। रविदास जी ने इन सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। वे स्वरचित भजन गाते थे तथा समाज सुधार के कार्य करते थे। उन्होंने लोगो को बताया की वाह्य आडंबर और भक्ति में बड़ा अंतर है। ईश्वर एक है। वह सबको समान भाव से प्यार करता है। यदि ईश्वर से मिलना है तो आचरण को पवित्र करो और मन में भक्ति -भाव जाग्रत करो।
रविदास जी अपने सच्चे कर्म को ही ईश्वरभक्ति मानते थे। रविदास जी दिनभर अपना कार्य करते थे और भजन गाते थे। अपने कार्य से खाली होने पर रविदास जी अपना समय साधु- संतो की संगति एवं ईश्वर भजन में बिताते थे। रविदास जी के भजनो का हिंदी साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त है।
रविदास जी के विचार -
- राम ,कृष्ण ,करीम ,राघव ,हरि ,अल्लाह ,एक ही ईश्वर के विविध नाम हैं।
- सभी धर्मों में ईश्वर की सच्ची अराधना पर बल दिया गया है।
- वेद ,पुराण ,कुरान आदि धर्मग्रंथ एक ही परमेश्वर का गुणगान करते हैं।
- ईश्वर के नाम पर किये जाने वाले विवाद निरर्थक एवं सारहीन हैं।
- सभी मनुष्य ईश्वर की ही संतान हैं ,अतः ऊंच - नीच का भेद - भाव मिटाना चाहिए।
- अभिमान नहीं अपितु परोपकार की भावना अपनानी चाहिए।
- अपना कार्य जैसा भी हो वह ईश्वर की पुजा के समान हैं।
संत रविदास के सीधे - सादे तथा मन को स्पर्श कर लेने वाले विचार लोगों पर सटीक प्रभाव डालते थे। लोंगो को लगता था की रविदास के भजनों में उनके ही मन की बात कहि गयी है। रविदास जी के अच्छे विचारो से इनके शिष्यों की संख्या धीरे -धीरे बढ़ने लगी। रविदास जी लोगों को समाज - सुधार के प्रति जागरूक करते तथा प्रभु के प्रति आस्थावान होने के लिए प्रेरित करते। रविदास जी सामाजिक सुधर एवं लोगो के हित में निरंतर तत्पर रहते थे।
गुरु रविदास अपने उच्च विचारों के कारण समाज एवं हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। रविदास जी का जीवन कर्मयोग का आदर्श उदाहरण है। उन्होंने अपने आचरण था व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया की मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महँ नहीं होता अपितु विचारों की श्रेष्ठता ,समाज हित कार्य ,सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं।
रविदास जी का प्रसिद्ध कथन -
"मन चंगा तो कठौती में गंगा "
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